
मध्यप्रदेश,कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के हालिया बयान ने पार्टी के भीतर नई बहस को जन्म दे दिया है। उनकी टिप्पणी को कई राजनीतिक विश्लेषक शशि थरूर की उस “विचारधारात्मक स्वतंत्रता” की राह पर बढ़ता कदम मान रहे हैं, जिसमें पार्टी लाइन से इतर मुद्दों पर खुलकर राय रखी जाती है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है, जब कांग्रेस संगठनात्मक मजबूती और वैचारिक स्पष्टता को लेकर मंथन के दौर से गुजर रही है।
CWC बैठक में टिप्पणी से बढ़ी हलचल
कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक में दिग्विजय सिंह की टिप्पणी ने माहौल को गर्मा दिया। सूत्रों के अनुसार उन्होंने कुछ नीतिगत और रणनीतिक मुद्दों पर खुलकर सवाल उठाए, जिसे पार्टी के एक वर्ग ने आंतरिक लोकतंत्र की मिसाल माना, तो दूसरे वर्ग ने इसे अनुशासनहीनता के रूप में देखा।
शशि थरूर से तुलना क्यों?
शशि थरूर लंबे समय से पार्टी के भीतर स्वतंत्र सोच और खुली बहस के समर्थक रहे हैं। चाहे नेतृत्व चुनाव का मुद्दा हो या राष्ट्रीय विषयों पर स्पष्ट रुख—थरूर ने कई बार पार्टी के अंदर नई बहस छेड़ी है। दिग्विजय सिंह की हालिया शैली भी कुछ ऐसी ही दिख रही है, जहां वे वैचारिक असहमति को सार्वजनिक रूप से रखने से नहीं हिचक रहे।
पार्टी के भीतर दो राय
समर्थक पक्ष का कहना है कि ऐसे वरिष्ठ नेताओं की स्पष्ट राय से पार्टी को आत्ममंथन का अवसर मिलता है और जमीनी कार्यकर्ताओं का भरोसा बढ़ता है।
आलोचक पक्ष मानता है कि सार्वजनिक मंचों पर मतभेद जाहिर करना विपक्ष को मुद्दा देता है और संगठनात्मक एकता पर असर डालता है।
आगे की राजनीति
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, यह रुझान कांग्रेस में नेतृत्व, रणनीति और विचारधारा को लेकर चल रही व्यापक बहस का हिस्सा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी नेतृत्व इन स्वतंत्र स्वरों को कैसे समाहित करता है—संवाद और समन्वय के जरिए या सख्त संगठनात्मक रुख अपनाकर।













